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अंग्रेजों का भारत आगमन (Part 2)

अंग्रेजों का भारत आगमन

(Part 2)


शादी के इस अवसर पर पुर्तगालियों द्वारा राजकुमार चार्ल्स द्वितीय को मुंबई तोहफे में दिया गया। सन 1668 में राजकुमार चार्ल्स द्वितीय ने ईस्ट इंडिया कंपनी को मुंबई 10 पाउंड प्रतिवर्ष किराए पर दे दिया। 1687 ईस्वी में ईस्ट इंडिया कंपनी का मुख्यालय सूरत से हटकर मुंबई आ गया।

सन 1691 में औरंगजेब ने अंग्रेजो को एक निश्चित वार्षिक धनराशि के बदले बंगाल में चुंगी रहित व्यापार करने की अनुमति दी। उसके बाद 1698 में कंपनी को राजस्व वसूल करने का अधिकार भी  प्राप्त हो गया।
औरंगजेब की मृत्यु (सन 1707) के बाद मुगल साम्राज्य कमजोर हो गया और इसका लाभ अंग्रेजों को मिला। उन्होंने और अधिक विशेष अधिकार प्राप्त किए।

फ्रांसीसियों का भारत आगमन

सन 1667 में फ्रांसीसियों का दल फ्रांसिस केरॉन के नेतृत्व में भारत आया।  फ्रांसीसियों ने 1668 में सूरत में सबसे पहला कारखाना स्थापित किया।

सन 1669 में फ्रांसीसियों ने मसूलीपट्टनम पर एक और कारखाना स्थापित किया। 1672 में एडमिरल डी ने गोलकुंडा के सुल्तान से सेनथोम जीत लिया।  सन 1674 में फ्रांसिस मार्टिन ने पांडिचेरी की स्थापना की।
अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के बीच व्यापार एवं राजनीतिक उद्देश्य के लिए काफी संघर्ष हुए। सन 1742 में पांडिचेरी के गवर्नर डूप्ले की नियुक्ति के साथ यह उद्देश्य और भी तीव्र गति उभरने लगे।

कर्नाटक के तीन युद्ध

इन्हीं व्यापारिक और राजनीतिक उद्देश्यों के कारण अंग्रेजों और फ्रांसीसियों के मध्य तीन कर्नाटक के युद्ध हुए।

प्रथम कर्नाटक युद्ध 1746 में ऑस्ट्रिया के उत्तराधिकार युद्ध के कारण प्रारंभ हुआ। इसका अंत 1748 में "ए-ला-शापल की संधि" के द्वारा हुआ।

दूसरा कर्नाटक युद्ध "हैदराबाद और कर्नाटक के उत्तराधिकार के युद्ध" के कारण हुआ।  जिसमें अंग्रेजों और फ्रांसीसियों ने भाग लिया। युद्ध 1751 से 1755 ईस्वी तक चला। 1755 में पांडिचेरी की संधि के साथ यह युद्ध समाप्त हुआ।

तीसरा कर्नाटक युद्ध 1756 ईस्वी में शुरू हुआ। तीसरा कर्नाटक युद्ध अंग्रेजो और फ्रांसीसियों के बीच, यूरोप में शुरू हुए सप्तवर्षीय युद्ध के कारण आरंभ हुआ।  और 1755 में हुई पांडिचेरी की संधि नाकाम हो गई।  1763 में पेरिस की संधि के साथ यह  युद्ध समाप्त हुआ।

सन 1760 अंग्रेज तथा फ्रांसीसियों के वानडिवाश की लड़ाई (तृतीय कर्नाटक युद्ध का भाग) हुई।   जिसमें अंग्रेजी सेना ने आयर कूट के नेतृत्व में यह लड़ाई जीती। और फ्रांसीसियों के सेनापति बुस्सी को बंदी बना लिया गया।  इस युद्ध के बाद भारत में फ्रांसीसियों का सूर्य अस्त हो गया।  पेरिस की संधि के बाद पांडिचेरी चंद्रनगर संधि के तहत फ्रांसीसियों को यह लौटा दिए गए। और यह शर्त रखी गई कि फ्रांसीसी भारत में कभी भी अपनी सेना नहीं रखेंगे।

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